किशोरावस्था जीवन चक्र का सबसे खास चरण है जो कि संभावनाएं और चुनौतियां साथ लेकर आता है। दरअसल यह बचपन और वयस्क होने के बीच की वो अहम कड़ी होती है जब किशोर में शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर महत्वपूर्ण बदलाव होते है। विशेषज्ञों का मानना है कि तमाम उम्र पर पड़ने वाले किशोरावस्था के प्रभावों के मद्देनज़र किशोरों के संपूर्ण स्वास्थ्य पर ध्यान देना अति आवश्यक है। किशोरावस्था मानव विकास का अद्वितीय चरण है।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में किशोरों की संख्या 25 करोड़ 30 लाख है जो किसी भी अन्य देश के मुक़ाबले अधिक है। ये हमारे देश की कुल आबादी का 21 प्रतिशत है या ऐसे कहा जा सकता है कि प्रत्येक पांचवां भारतीय 'एक किशोर' है। जनसंख्या में इतनी बड़ी हिस्सेदारी भी किशोरों और किशोरावस्था को महत्वपूर्ण बनाती है। राजस्थान में 10 से 19 साल उम्र के किशोरों की आबादी 1.5 करोड़ (राज्य की कुल जनसंख्या का 23 प्रतिशत) है।
दरअसल जब बात किशोरावस्था की होती है तो ये समझना आवश्यक है कि उम्र के इस नाज़ुक पड़ाव में एक किशोर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्तर पर महती बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रहा होता है। ईएसआई मॉडल अस्पताल में मनोचिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर अखिलेश जैन बताते हैं कि "मनोवैज्ञानिक स्तर पर एक किशोर के लिए ये परिवर्तन, स्वयं के बारे में समझ विकसित होने से शुरू होना माना जा सकता है ऐसे में किशोर इस बात को लेकर खासे संवेदनशील हो जाते हैं कि दूसरे लोग उनके बारे में क्या राय रखते हैं, विशेष तौर पर उनके अपने खास साथियों का उनके बारे में क्या और कैसा सोचते है। साथ ही , उनकी अपेक्षा होती है कि उन्हें स्वतंत्रता मिलें। उन्हें ऐसा लगने लगता है कि अपने निर्णयों, भावनाओं और क्रिया-कलापों के लिए अब उन्हें ज्यादा आजादी चाहिए। तरुणावस्था में एक किशोर में ये इच्छा भी प्रबल होने लगती है कि वो ना केवल अपने करीबी दोस्तों के ग्रुप में सबसे योगय हो बल्कि सबसे खास भी हो। इसके साथ ही जैसे-जैसे उनमें शारीरिक बदलाव आने लगते हैं वो खुद को पहले से अलग महसूस करने लगते हैं और खुद के प्रति ज्यादा संवेदनशील होने लगते हैं।"
किशोरावस्था के दौरान लड़के-लड़कियों को शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं। उम्र की इस दहलीज़ पर एक किशोर में मानसिक तौर पर परिपक्वता आने की तुलना में शारीरिक परिवर्तन कहीं ज्यादा तेज़ी से और ज्यादा स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होते हैं। यही वजह है कि किशोरावस्था पर खास ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है क्योंकि व्यक्तिगत और वातावरण दोनों का ही प्रभाव किशोरावस्था के दौरान होने वाले इन परिवर्तनों पर पड़ता है। यह भी समझना होगा कि किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तनों का न केवल किशोरावस्था में, बल्कि जीवन पर्यन्त स्वास्थ्य पर असर होता है।
सेव द चिल्ड्रन के डिप्टी डायरेक्टर, प्रोग्राम एंड पॉलिसी, संजय शर्मा कहते हैं कि किशोरावस्था की इस अनूठी प्रकृति और महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे स्वास्थ्य नीति और कार्यक्रमों में विशिष्ट स्थान मिलना चाहिए। लाइफ स्किल एजुकेशन प्रदान करने और स्कूल स्तर पर सशक्तीकरण से ही इनसे जुड़े 80 प्रतिशत मुद्दों का समाधान संभव है। इसके साथ ही सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने और राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी योजनाओं का पूरे राज्य में विस्तार करने की आवश्यकता है।"
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), किशोरावस्था को शैशवकाल और गर्भधारण के साथ जीवन चक्र की तीसरी सबसे संवेदनशील अवस्था मानता है। लेकिन किशोरों की आवश्यकताओं को अक्सर उपेक्षित किया जाता है, क्योंकि उन्हें आमतौर पर छोटे बच्चों या फिर वयस्कों के साथ रखा जाता है। अक्सर सभी किशोरों को भी एक ही समूह माना जाता है, परंतु लड़कियों और लड़कों में आवश्यकताएं और स्वास्थ्य समस्याएं अलग-अलग होती हैं जिनके लिए रणनीति अपनाने की आवश्यकता होती है।
किशोरों के स्वास्थ्य और हितों की रक्षा न केवल सामाजिक दायित्व ही है बल्कि संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकारों पर सम्मेलन (CRC) के अनुसार ये समाज की नैतिक जिम्मेदारी भी है कि कल के वयस्कों को आज सबसे अच्छी शुरुआत देना सुनिश्चित किया जाए। ।
किशोर स्वास्थ्य में निवेश का सीधा परिणाम होगा कि:
• जीवनस्तर में सुधार; पोषण, मानसिक स्वास्थ्य, यौन स्वास्थ्य के स्तर में सुधार होगा जिससे अगली पीढ़ी अधिक उत्पादक,प्रसन्न और स्वस्थ होगी।
• आर्थिक लाभ: भावी पीढ़ी स्वस्थ होगी तो उसमें तीव्र आर्थिक विकास की संभावना को साकार करने का सामर्थ्य होगा; स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में कमी आएगी और स्वस्थ, समावेशी व उत्पादक कार्यबल संभव होगा।
• जनसांख्यिकीय लाभ: मानव संसाधन का सरंक्षण ,भावी पीढ़ी के सकारात्मक व्यवहार से अपराधों में कमी, परिवार के आरोग्य से गरीबी में कमी, शिक्षा के स्तर में वृद्धि, मृत्यु दर में कमी।
स्पष्ट है कि किशोरों के स्वास्थ्य में निवेश के न केवल तात्कालिक फायदे हैं अपितु इसके दीर्घकालिक लाभ भी होंगे, एवं आने वाले वर्षों में अधिक उत्पादक समाज की स्थापना हो सकेगी। स्वस्थ किशोरावस्था, बेहतर शैक्षिक अवसर, सकारात्मक सामाजिक जुड़ाव और आर्थिक योगदान के पूरे चक्र से इसकी पुष्टि भी होती है|
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में किशोरों की संख्या 25 करोड़ 30 लाख है जो किसी भी अन्य देश के मुक़ाबले अधिक है। ये हमारे देश की कुल आबादी का 21 प्रतिशत है या ऐसे कहा जा सकता है कि प्रत्येक पांचवां भारतीय 'एक किशोर' है। जनसंख्या में इतनी बड़ी हिस्सेदारी भी किशोरों और किशोरावस्था को महत्वपूर्ण बनाती है। राजस्थान में 10 से 19 साल उम्र के किशोरों की आबादी 1.5 करोड़ (राज्य की कुल जनसंख्या का 23 प्रतिशत) है।
किशोरावस्था के दौरान लड़के-लड़कियों को शरीर में कई तरह के परिवर्तन होते हैं। उम्र की इस दहलीज़ पर एक किशोर में मानसिक तौर पर परिपक्वता आने की तुलना में शारीरिक परिवर्तन कहीं ज्यादा तेज़ी से और ज्यादा स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होते हैं। यही वजह है कि किशोरावस्था पर खास ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है क्योंकि व्यक्तिगत और वातावरण दोनों का ही प्रभाव किशोरावस्था के दौरान होने वाले इन परिवर्तनों पर पड़ता है। यह भी समझना होगा कि किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तनों का न केवल किशोरावस्था में, बल्कि जीवन पर्यन्त स्वास्थ्य पर असर होता है।
सेव द चिल्ड्रन के डिप्टी डायरेक्टर, प्रोग्राम एंड पॉलिसी, संजय शर्मा कहते हैं कि किशोरावस्था की इस अनूठी प्रकृति और महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे स्वास्थ्य नीति और कार्यक्रमों में विशिष्ट स्थान मिलना चाहिए। लाइफ स्किल एजुकेशन प्रदान करने और स्कूल स्तर पर सशक्तीकरण से ही इनसे जुड़े 80 प्रतिशत मुद्दों का समाधान संभव है। इसके साथ ही सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने और राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी योजनाओं का पूरे राज्य में विस्तार करने की आवश्यकता है।"
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), किशोरावस्था को शैशवकाल और गर्भधारण के साथ जीवन चक्र की तीसरी सबसे संवेदनशील अवस्था मानता है। लेकिन किशोरों की आवश्यकताओं को अक्सर उपेक्षित किया जाता है, क्योंकि उन्हें आमतौर पर छोटे बच्चों या फिर वयस्कों के साथ रखा जाता है। अक्सर सभी किशोरों को भी एक ही समूह माना जाता है, परंतु लड़कियों और लड़कों में आवश्यकताएं और स्वास्थ्य समस्याएं अलग-अलग होती हैं जिनके लिए रणनीति अपनाने की आवश्यकता होती है।
किशोरों के स्वास्थ्य और हितों की रक्षा न केवल सामाजिक दायित्व ही है बल्कि संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकारों पर सम्मेलन (CRC) के अनुसार ये समाज की नैतिक जिम्मेदारी भी है कि कल के वयस्कों को आज सबसे अच्छी शुरुआत देना सुनिश्चित किया जाए। ।
किशोर स्वास्थ्य में निवेश का सीधा परिणाम होगा कि:
• जीवनस्तर में सुधार; पोषण, मानसिक स्वास्थ्य, यौन स्वास्थ्य के स्तर में सुधार होगा जिससे अगली पीढ़ी अधिक उत्पादक,प्रसन्न और स्वस्थ होगी।
• आर्थिक लाभ: भावी पीढ़ी स्वस्थ होगी तो उसमें तीव्र आर्थिक विकास की संभावना को साकार करने का सामर्थ्य होगा; स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में कमी आएगी और स्वस्थ, समावेशी व उत्पादक कार्यबल संभव होगा।
• जनसांख्यिकीय लाभ: मानव संसाधन का सरंक्षण ,भावी पीढ़ी के सकारात्मक व्यवहार से अपराधों में कमी, परिवार के आरोग्य से गरीबी में कमी, शिक्षा के स्तर में वृद्धि, मृत्यु दर में कमी।
स्पष्ट है कि किशोरों के स्वास्थ्य में निवेश के न केवल तात्कालिक फायदे हैं अपितु इसके दीर्घकालिक लाभ भी होंगे, एवं आने वाले वर्षों में अधिक उत्पादक समाज की स्थापना हो सकेगी। स्वस्थ किशोरावस्था, बेहतर शैक्षिक अवसर, सकारात्मक सामाजिक जुड़ाव और आर्थिक योगदान के पूरे चक्र से इसकी पुष्टि भी होती है|