इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी से संभव है लीवर कैंसर का सरल व सहज इलाज: डॉ. निखिल बंसल 

 


 
कैंसर एक जानलेवा बीमारी है जो लीवर में भी हो सकती है। लीवर कैंसर के भी कई प्रकार है जिनमें से हेपैटोसेलुलर कार्सिनोमा (एचसीसी) एक है। पारंपरिक पद्धतियों से एचसीसी के इलाज में काफी जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। मुख्यत: कैंसर की गांठ को निकालने के लिए सर्जरी की जाती है। चीर फाड़ के बाद घाव भरने तक मरीज को काफी पीड़ा से गुजरना पड़ता है। ऐसे में इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी एक बेहतर विकल्प बनकर सामने आया है जिसने मरीजों को पीड़ा रहित इलाज देने के साथ आशाजनक परिणाम दिए हैं। इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी ट्रीटमेंट से मरीज की रिकवरी भी कम समय में होती है। सीनियर इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट डॉ. निखिल बंसल ने लीवर कैंसर से जुड़े इस ट्रीटमेंट पर प्रकाश डालते हुए बताया कि एचससी के इलाज के लिए तीन अहम प्रक्रिया अपनाई जाती है। इनमें एब्लेशन, ट्रांसआर्टेरियल कीमोएम्बोलाइज़ेशन (टीएसीई) और ट्रांसआर्टेरियल रेडियोएम्बोलाइज़ेशन (टीएआरई) शामिल है। 
 
एब्लेशन 
 
एब्लेशन में रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन (आरएफए) और माइक्रोवेव एब्लेशन (एमडब्ल्यू) जैसी तकनीक शामिल हैं। यह ट्रीटमेंट विशेषतौर पर उन मरीजों के लिए काम लिया जाता है जिनका ट्यूमर छोटा हो या जो सर्जरी नहीं करवा सकते है। पहले अल्ट्रासोनोग्राफी से ट्यूमर को ट्रेस किया जाता है। छोटा से छेद कर ट्यूमर को टारगेट करते हुए रेडियोएक्टिव और माइक्रोवेव रे छोड़ी जाती है। सामान्य कोशिकाओं को छोड़ते हुए इन किरणों की हीट से कैंसर सेल को नष्ट किया जाता है।  
 
ट्रांसआर्टेरियल कीमोएम्बोलाइज़ेशन (टीएसीई)
 
टीएसीई में इंटरवेंशनल प्रोसेस और कीमोथेरेपी को साथ काम लिया जाता है। इंटरवेंशनल प्रोसेस के जरिए एक ट्यूब कैंसर ट्यूमर तक पहुंचाई जाती है। ये ट्यूब उस नस में रक्त के प्रवाह को रोक देती है जिससे ट्यूमर को खून पहुंच रहा है। अब इस ट्यूब से ट्यूमर तक कीमोथेरेपी की दवा पहुंचाई जाती है। इससे ट्यूमर धीरे—धीरे नष्ट होने लगता है। यह उपचार अधिक प्रभावी है और इसके साइड इफ़ेक्ट भी कम होते हैं।
 
ट्रांसआर्टेरियल रेडियोएम्बोलाइज़ेशन (टीएआरई) 
 

इसे सेलेक्टिव इंटरनल रेडिएशन थेरेपी (एसआईआरटी) भी कहा जाता है। डॉ. निखिल बंसल ने बताया कि टीएआरई में रेडियोएक्टिव पार्टिकल का उपयोग किया जाता है। ट्यूमर तक रक्त पहुंचाने वाली नसों में इंटरवेंशनल प्रोसेस से इन पार्टिकल्स को पहुंचाया जाता है। ये पार्टिकल ट्यूमर तक पहुंचते है फिर वहां रेडिएशन छोड़ते है। इससे ट्यूमर सेल्स नष्ट हो जाती है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि स्वस्थ कोशिकाओं पर यह किसी तरह का प्रभाव नहीं छोड़ते है
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