"बिना वैज्ञानिकी दुग्ध संग्रहण, भंडारण, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन, नहीं उद्धार": प्रो राठौड़

 


महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संघटक डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय में राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा प्रायोजित पांच दिवसीय प्रशिक्षण का समापन समारोह 30 अक्टूबर 2021 को हुआ। प्रशिक्षण में 50 महिला  प्रशिक्षार्थियों को डेयरी में तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया। 
 
ट्रेनिंग का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को दुग्ध का वैज्ञानिक संग्रहण, भंडारण, प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन से परिचित करना था। 
 
कुलपति प्रो. नरेंद्र सिंह राठौड़ ने महिलाओं को दूध का महत्व बताते हुए वर्तमान परिदृश्य में भारत एवं राजस्थान में दूध उत्पदान एवं प्रसंस्करण के बारे में जानकारी दी। भारत 22 प्रतिशत वैश्विक उत्पादन के साथ दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक है, इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, पाकिस्तान और ब्राजील हैं। 
 
दुनिया भर में लगभग 150 मिलियन परिवार दुग्ध उत्पादन में लगे हुए हैं। अधिकांश विकासशील देशों में, दूध का उत्पादन छोटे किसानों द्वारा किया जाता है, और दूध उत्पादन घरेलू आजीविका, खाद्य सुरक्षा और पोषण में योगदान देता है। 
 
दूध छोटे पैमाने के उत्पादकों के लिए अपेक्षाकृत जल्दी प्रतिफल प्रदान करता है और नकद आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। उन्होंने भारत सरकार एवं राजस्थान सरकार की प्रमुख डेयरी कल्याण योजनाओं पर प्रकाश डाला। 
 
साथ ही बकरी दूध उत्पादन का महत्व भी बताया। उन्होंने सहकार के महत्व को प्रकाशित करते हुए बताया कि बिना सहकार, नहीं उद्धार। उन्होंने बताया कि यदि भारत को डेयरी निर्यातक देश के रूप में उभरना है, तो उचित उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन बुनियादी ढाॅंचे को विकसित करना अनिवार्य है, जो अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है।
 
प्रशिक्षण में जाने माने विशेषज्ञों द्वारा लेक्चर लिए गए जिनमें श्रीमती रेखा शर्मा जी, चेयरपर्सन, राष्ट्रीय महिला आयोग; प्रो. नरेंद्र सिंह राठौड़, माननीय कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, श्रीमती मीता राजीवलोचन, आई. आए. एस. एवं मेंमबर सेक्रेट्री, राष्ट्रीय महिला आयोग, श्रीमान ऐ. अशोली चलाई, जॉइंट सेक्रेटरी, राष्ट्रीय महिला आयोग एवं श्री शैलेश कुमार जैन, सहायक जनरल मैनेजर - कस्टम हायरिंग, टी. ऐ. एफ. ई. कंपनी, जयपुर डॉ. आर. के. कौशिक, डायरेक्टर, डी. ई. ई., डॉ. आई. जे. माथुर, डॉ. नरेंद्र कुमार जैन, अधिष्ठाता, 
 
डॉ. निकिता वधावन, प्रशिक्षण समन्वयक डेयरी एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, श्रीमती ऊषा जैन, डिप्टी मैनेजर, आर. सी. डी. एफ., सुश्री सिध्देश्वरी चौहान, मार्केटिंग मैनेजर, अमूल, प्रो. लोकेश गुप्ता, श्री आर. के. जेठाना, मार्केटिंग मैनेजर, आर. सी. डी. एफ., प्रो. पीयूष जानी, डॉ. जी. पी. शर्मा, डॉ. करुण चंडालिया, मैनेजिंग डायरेक्टर, आर. सी. डी. एफ., पाली एवं डॉ. सुरेंद्र छंगानी, डिप्टी डायरेक्टर, गवर्नमेंट एनीमल हसबेंडरी इंस्टिट्यूट प्रमुख थे। 

प्रो. जैन ने बताया कि दूध मानव आवश्यकता के लिए बहुत ही बुनियादी है। भारत मे पिछले छह वर्षों के दौरान दूध उत्पादन 35.61% से बढ़कर 2019-20 में 19 करोड़ 84 लाख टन हो गई थी। पूरे भारत में राजस्थान दुग्ध उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। 
 
संगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में, भारतीय डेयरी उद्योग आर्थिक विकास/मूल्य संवर्धन को बढ़ाकर और भोजन के पोषण मूल्य में उल्लेखनीय वृद्धि करके देश के स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। दूध प्रसंस्करण के दो मुख्य उद्देश्य दूध की गुणवत्ता को बनाए रखना और कच्चे दूध में मौजूद सभी रोगजनक सूक्ष्म जीवों को मारना है। दूध का प्रसंस्करण आम तौर पर खाद्य श्रृंखला के अगले चरण में अपेक्षित उपयोग के साथ-साथ अपेक्षित शेल्फ़ लाइफ़ पर निर्भर करता है।
 
प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. निकिता वधावन ने बताया कि महिलायें 'बिजनेस वीमेन' बनकर अपनी आय में वृद्धि कर सकें इसके लिए उन्हें वेबसाईट निर्माण प्रक्रिया से भी रु-ब-रु करवाया। साथ ही, नाबार्ड जैसे संस्थाओं से भी परिचित करवाया। 
 
दुग्ध प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन से किसानों को धन का सृजन हो सकता है और इस प्रकार उनकी जीवन शैली में सुधार हो सकता है। डेयरी उत्पादों के प्रसंस्करण से छोटे पैमाने के डेयरी उत्पादकों को कच्चा दूध बेचने की तुलना में अधिक नकद आय प्राप्त होती है और क्षेत्रीय और शहरी बाजारों तक पहुंचने के बेहतर अवसर मिलते हैं। 
 
दूध की आपूर्ति में मौसमी उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए दूध प्रसंस्करण भी मदद कर सकता है। प्रशिक्षण में महिलाओं को अनेक दूध उत्पादों के वैज्ञानिक प्रसंस्करण विधियाँ बतायी जिनमें दही, लस्सी, श्रीखण्ड, पनीर, फ्लावरेड दूध, घी एवं घी अवशेष प्रमुख थे। उत्पदान के साथ साथ मार्केटिंग के प्रशिक्षण पर भी ज़ोर दिया गया।
 
प्रशिक्षण के दौरान लाइवस्टॉक फार्म, राजस्थान कृषि महाविद्यालय के विभिन्न विभागों जिनमें डेयरी पशु विभाग, पोल्ट्री विभाग, ब्रायलर खरगोश विभाग, ब्रूडर विभाग, बकरी विभाग,अजोला यूनिट एवं मिनरल मिश्रण उत्पादन यूनिट का भ्रमण कराया गया।  
 
वँहा महिलाओं ने सोजत बकरी प्रोजेक्ट के बारे में विस्तार से जाना। साथ ही,  स्वच्छ दूध उत्पादन एवं बाड़े के सफाई के महत्व को भी समझा। राजस्थान कोआपरेटिव डेरी फेडरेशन के डेयरी प्लांट की विजिट भी करवायी गयी। वँहा उन्हें कच्चा दूध रिसेप्शन, मार्केट दूध प्रसंस्करण, लस्सी, दही, घी, श्रीखंड एवं फ्लेवर्ड मिल्क प्रसंस्करण तथा पैकेजिंग विभाग में की जाने वाली प्रमुख गतिविधियों को समझाया गया।
 
महिलओं द्वारा प्रशिक्षण की भूरी भूरी प्रशंसा की। प्रशिक्षण का मुख्य आकर्षण "हैंड्स ऑन ट्रेनिंग" था, जिसमें महिलाओं द्वारा प्रत्येक डेयरी उत्पाद को प्रशिक्षण पश्चात स्वयं बनाना होता था। पांच दिवसीय प्रशिक्षण के सफल आयोजन में डॉ सीमा तंवर, वीरेश राजपूत, मानविक जोशी, विजय सालवी, सुनिता चौधरी, कोमल निठारवाल एवं कपिल शर्मा का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
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